विषय 3 पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास
भूमिका
भारत में पंचायती राज व्यवस्था स्थानीय स्वशासन की एक सशक्त प्रणाली है जिसकी नींव हमारे प्राचीन इतिहास में गहराई से जुड़ी हुई है। आज जिस व्यवस्था को हम ग्राम पंचायतों के रूप में देखते हैं उसकी शुरुआत हजारों वर्ष पूर्व से होती है। समय के साथ साथ इस प्रणाली में कई बदलाव हुए लेकिन इसका मूल उद्देश्य सदैव ग्रामीण जनों की भागीदारी और आत्मनिर्भर प्रशासन रहा है।
प्राचीन भारत में पंचायतों की व्यवस्था
प्राचीन भारत में गाँव प्रशासन की इकाई होते थे और हर गाँव में पंच नामक पांच बुजुर्ग या ज्ञानी व्यक्ति सामाजिक मामलों का निर्णय लिया करते थे। इन पंचों को परमेश्वर तुल्य माना जाता था इसलिए पंच परमेश्वर की अवधारणा विकसित हुई। ऋग्वेद और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी पंचों की सभा और गाँवों की स्वायत्तता का उल्लेख मिलता है।
मौर्य और गुप्त काल में ग्राम सभाएँ शक्तिशाली थीं जो राजस्व एकत्र करने से लेकर आपसी विवादों का निपटारा करने तक के कार्य करती थीं। इन सभाओं को राजा का भी सहयोग प्राप्त होता था और प्रशासनिक ढांचे का यह एक अहम हिस्सा थीं।
मध्यकाल में पंचायतों की स्थिति
मध्यकाल में भारत पर मुस्लिम और बाद में मुग़ल शासकों के आगमन के साथ पंचायतों की शक्ति में गिरावट आई। केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ी और स्थानीय प्रशासन पर नियंत्रण बढ़ा दिया गया। फिर भी ग्रामीण भारत में पंचायतों का अस्तित्व बना रहा और सामाजिक जीवन को नियंत्रित करने में इनकी भूमिका बनी रही।
ब्रिटिश काल में पंचायतों का पतन और सुधार
ब्रिटिश शासनकाल में पंचायती व्यवस्था को काफी नुकसान हुआ। अंग्रेज़ों ने अपने कर संग्रह और प्रशासन के लिए गाँवों की स्वायत्तता को कम किया और राजस्व अधिकारी व कलेक्टर जैसे पदों की स्थापना की। इससे ग्रामीण स्वशासन की जड़ें कमजोर पड़ीं।
फिर भी अठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद और विशेषकर बीसवीं सदी की शुरुआत में स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने पंचायती व्यवस्था को पुनर्जीवित करने की बात की। महात्मा गांधी ने पंचायती राज को ग्राम स्वराज का आधार बताया और कहा कि भारत का असली निर्माण गाँवों के मजबूत होने से होगा।
स्वतंत्र भारत में पंचायती राज की शुरुआत
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान में लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया गया और इसके तहत स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता को स्वीकार किया गया। वर्ष उन्नीस सौ पचास में संविधान लागू होने के बाद अनुच्छेद चालीस के तहत राज्य को निर्देश दिया गया कि वह ग्राम पंचायतों की स्थापना करे और उन्हें सशक्त बनाए।
वर्ष उन्नीस सौ बावन में बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया जिसका उद्देश्य विकास योजनाओं के लिए प्रशासनिक ढांचा तैयार करना था। इस समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की सिफारिश की
पहला ग्राम पंचायत गाँव स्तर पर
दूसरा पंचायत समिति प्रखंड स्तर पर
तीसरा जिला परिषद जिला स्तर पर
इस सिफारिश को अपनाते हुए पहली बार दो अक्टूबर उन्नीस सौ उनसठ को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज प्रणाली की शुरुआत हुई। बाद में यह अन्य राज्यों में भी लागू की गई।
आधुनिक पंचायती राज प्रणाली और संविधान संशोधन
हालाँकि पंचायती व्यवस्था कुछ राज्यों में कार्य कर रही थी लेकिन इसे कानूनी और संवैधानिक आधार नहीं मिला था। इस स्थिति को बदलने के लिए भारत सरकार ने वर्ष उन्नीस सौ बानवे में बहुप्रतीक्षित तिहत्तरवां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया जिससे पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।
यह संशोधन एक अप्रैल उन्नीस सौ तिरानवे से लागू हुआ। इसके तहत निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए
पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था को सभी राज्यों में अनिवार्य किया गया
पंचायतों के नियमित चुनाव हर पांच वर्षों में कराए जाने की व्यवस्था की गई
महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया गया
अनुसूचित जातियों जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई
राज्य वित्त आयोग और राज्य चुनाव आयोग की स्थापना अनिवार्य की गई
ग्राम सभा को कानूनी अधिकार दिए गए
तिहत्तरवें संशोधन के प्रभाव
इस संशोधन के लागू होने से पंचायतों को एक नई पहचान और कानूनी मजबूती मिली। अब पंचायतें केवल सलाह देने वाली संस्था नहीं रहीं बल्कि उन्हें योजना निर्माण बजट प्रबंधन और विकास कार्यों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने ग्रामीण राजनीति को नया आयाम दिया। अनेक राज्यों में यह आरक्षण पचास प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया जिससे महिला सशक्तिकरण को बल मिला।
पंचायती राज का वर्तमान स्वरूप
आज भारत के लगभग सभी राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू है। ग्राम पंचायत पंचायत समिति और जिला परिषद के माध्यम से शासन की नीतियाँ गांव स्तर तक पहुँचती हैं। पंचायतें न केवल बुनियादी सेवाओं का संचालन करती हैं बल्कि स्वच्छता पोषण स्वास्थ्य रोजगार शिक्षा और महिला कल्याण जैसे क्षेत्रों में भी कार्य कर रही हैं।
डिजिटल भारत अभियान के तहत कई पंचायतों को इंटरनेट और कंप्यूटर सेवाओं से जोड़ा गया है जिससे शासन व्यवस्था पारदर्शी और उत्तरदायी बनी है।
पंचायती राज व्यवस्था से जुड़ी चुनौतियाँ
हालाँकि पंचायती राज प्रणाली ने ग्रामीण शासन को एक नई दिशा दी है लेकिन आज भी इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं जैसे
कई पंचायतों को पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं मिलते
प्रशिक्षण और जानकारी की कमी के कारण प्रतिनिधि योजनाओं को सही तरीके से लागू नहीं कर पाते
भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप से विकास बाधित होता है
ग्रामसभा की बैठकें औपचारिक बनकर रह जाती हैं और जनभागीदारी कम होती है
समाप्ति और निष्कर्ष
भारत की पंचायती राज व्यवस्था एक लंबा ऐतिहासिक सफर तय कर चुकी है। प्राचीन समय की परंपरा से शुरू होकर आज यह एक संवैधानिक और लोकतांत्रिक प्रणाली बन चुकी है। यदि इसे और अधिक सशक्त किया जाए तो यह ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर और विकसित बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है।
पंचायती राज केवल शासन प्रणाली नहीं है बल्कि यह भारत के लोकतंत्र की असली पहचान है।
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